मैं दे रही हूँ हरपल इम्तेहाँ
तेरी नाराज़गियों को भी दिल से लगा लिया
तेरी बेरुखियों को भी ले अपना बना लिया
तू दूर रहे या पास मेरे
साथ रहेंगे ये एहसास तेरे
नहीं शिक़वा इन मज़बूरियों से मुझे
नहीं शिक़ायत इन खामोशियों से तेरे
मुझे मिला उतना जितना मेरा नसीब था
दो पल के लिए ही सही जो तू मेरे करीब था
ज़िन्दगी और माँगती भी तो देती मुझे क्या
जो था मेरा सब मैंने तो तुझे ही दे दिया
यादें तेरी जनमों जनम तक आती रहेंगी
कभी मुस्कान तो कभी अश्क़ बन रुलाती रहेंगी
सदियों तक मैं तेरा इंतज़ार सिर्फ इंतज़ार करुँगी
कह ना सकी जो तुझसे वो बस यूँ ही बयान करुँगी
कबतक रहेगी मुहौब्बत अधूरी मेरी
कबतक तड़पेगी यूँ ही चाहत मेरी
आजा की ज्योत आस की बुझ ना जाए मेरी
बाँवरी भई मैं तो कबसे ओ रे पिया तेरी...