Dastaan Ye Dil Ki

Thursday, October 22, 2015

ढलती शाम में बुझती हुई एक लौ सी हूँ मैं...

खुद को तेरी नज़रों में
देखने को हरघड़ी तड़पती हूँ मैं
सिमटने को तेरी बाहों में
पल पल मचला करती हूँ मैं

जुड़ी है हर साँस तुझसे
की बिन तेरे तिल तिल जलती हूँ मैं
बातें जो मैं कह ना सकी तुझसे
ख्वाबों में कई बार वो तुझसे किया करती हूँ मैं

ज़िन्दगी बिखरी और बेजान सी है
जो तेरे संग तेरे पास नहीं हूँ मैं
और दूर तक फैले रेगिस्तान सी है
जिसमें रुंधती हर लम्हा तेरी यादों से हूँ मैं

तुझे शायद एहसास भी नहीं
जो तू नहीं ज़िंदा नहीं एक लाश सी हूँ मैं
और कोई जीने की वजह मेरे पास है भी नहीं
अब तो ढलती शाम में बुझती हुई एक लौ सी हूँ मैं...



Wednesday, October 14, 2015

अंजाम-ए-मुहौब्बत से ज़रा कोई मुझे भी रूबरू करा दे...

क्यों दिल सिर्फ तेरा
इंतज़ार करता है
क्यों हर आहट मुझे तेरे    
आने का एहसास दिलाती है
क्यों धड़कन सिर्फ तेरे
नाम पर धड़कती है   
क्यों नज़र सिर्फ और सिर्फ
तेरे दरस को तरसती है... 
इन सवालों का कोई तो
मुझे बस जवाब दिला दे
गर सिर्फ ख़्वाब नहीं
हकीक़त भी होती है मुहौब्बत
तो अंजाम-ए-मुहौब्बत से ज़रा कोई तो
मुझे भी रूबरू करा दे...

Friday, October 9, 2015

एक दिन माटी में मिल जाऊंगी...

एक दिन माटी में मिल जाऊंगी
जल कर राख हो जाउंगी
तब जो छूने की कोशिश करोगे
हाथ में सिर्फ काले रंग दे जाऊंगी

आज जो साँसें चलती हैं  मेरी
तुझे मेरे वज़ूद का एहसास नहीं
आज जो सामने हूँ मैं तेरे
तेरे पास मेरी पीड़ा का इलाज नहीं

एक दिन खामोश हो जाऊंगी
मैं अंधेरों के दामन में सो जाऊंगी
तब जो मेरी आवाज़ सुनने की कोशिश करोगे
मैं तुम्हें  सिर्फ अपनी खामोशियाँ दे जाऊंगी

एक दिन माटी में मिल जाऊंगी
जल कर राख हो जाउंगी...




Tuesday, October 6, 2015

है रात बहुत काली...


है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई
मुस्कुराहट है खफ़ा-खफ़ा आँखें जाने क्यों इतना रोई                                             
गर देखती तो ख़्वाब सच भी हो जाते शायद 
पर मेरी अँखियाँ बेचारी तो रात भर ना सोई
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई

इस अँधियारी रतिया से कह दो यूँ ना मुझे डराए                                     
अब और कोई भरम दे के झूठ को सच तो ना बताए                   
मिलते नहीं चाँद सितारे जाए जा के किसी और को बहलाए
इस अँधियारी रतिया से कह दो यूँ ना मुझे डराए        

है अमावस की रात ज़रा दीपक तो जला दे कोई
हाँ ज़रा भटक गई हूँ थाम के हाथ ज़रा राह  दिखा दे कोई                                      
छुप गई है रौशनी ओढ़ के काली चद्दर 
गहराते इन रंगों से कह दे कि ना लिखे वो मेरा मुक्कद्दर 
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई
है अमावस की रात ज़रा दीपक तो जला दे कोई
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई