Dastaan Ye Dil Ki

Tuesday, October 6, 2015

है रात बहुत काली...


है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई
मुस्कुराहट है खफ़ा-खफ़ा आँखें जाने क्यों इतना रोई                                             
गर देखती तो ख़्वाब सच भी हो जाते शायद 
पर मेरी अँखियाँ बेचारी तो रात भर ना सोई
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई

इस अँधियारी रतिया से कह दो यूँ ना मुझे डराए                                     
अब और कोई भरम दे के झूठ को सच तो ना बताए                   
मिलते नहीं चाँद सितारे जाए जा के किसी और को बहलाए
इस अँधियारी रतिया से कह दो यूँ ना मुझे डराए        

है अमावस की रात ज़रा दीपक तो जला दे कोई
हाँ ज़रा भटक गई हूँ थाम के हाथ ज़रा राह  दिखा दे कोई                                      
छुप गई है रौशनी ओढ़ के काली चद्दर 
गहराते इन रंगों से कह दे कि ना लिखे वो मेरा मुक्कद्दर 
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई
है अमावस की रात ज़रा दीपक तो जला दे कोई
है रात बहुत काली मुझे भोर दिखा दे कोई

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