अब हार ही चुकी हूँ मैं
ऐ-तक़दीर तुझसे लड़ते-लड़ते
ज़िन्दगी मेरे संग मुस्कुराती नहीं
मौत तू भी मुझे गले लगाती नहीं
कि किस डगर चलूं बता
कोई तो राह होगी मेरे लिए भी
की हर रोज़ एक उम्मीद से उठती हूँ
और हर शाम टूट कर बिखर जाती हूँ
देखा है अँधेरा इतना
की अब डर नहीं लगता है
ना मुस्कुराहटों से रिश्ता है
ना आंसुओं से कोई नाता है
अब तो खुद को भी जैसे
भूलने सी लगी हूँ मैं
की गर कल ना मिली कहीं
पता भी मेरा पूछना नहीं
की अब हार चुकी हूँ मैं
ऐ-तक़दीर तुझसे लड़ते-लड़ते...
ऐ-तक़दीर तुझसे लड़ते-लड़ते
ज़िन्दगी मेरे संग मुस्कुराती नहीं
मौत तू भी मुझे गले लगाती नहीं
कि किस डगर चलूं बता
कोई तो राह होगी मेरे लिए भी
की हर रोज़ एक उम्मीद से उठती हूँ
और हर शाम टूट कर बिखर जाती हूँ
देखा है अँधेरा इतना
की अब डर नहीं लगता है
ना मुस्कुराहटों से रिश्ता है
ना आंसुओं से कोई नाता है
अब तो खुद को भी जैसे
भूलने सी लगी हूँ मैं
की गर कल ना मिली कहीं
पता भी मेरा पूछना नहीं
की अब हार चुकी हूँ मैं
ऐ-तक़दीर तुझसे लड़ते-लड़ते...