तेरी दुआ में भी अब तो बददुआ नज़र आती है
मुहौब्बत का क़त्ल करती नफरत नज़र आती है
सच और झूठ के जंग में जज़्बात दम तोड़ती नज़र आती है
टूट कर टुकड़ों में बिखरती अपनी तक़दीर नज़र आती है
ज़र्रे ज़र्रे से सिसकती हुई बेवफा एक परछाईं नज़र आती है
सहमी सी खौफ के साये में लिपटी तरसती हुई जुदाई नज़र आती है
बेरहम इस इश्क़ में मिली दिलबर की रुसवाई नज़र आती है
काली अँधियारी रातियों में दूर तक फैली सिर्फ तन्हाई नज़र आती है
तेरी दुआ में भी अब तो बददुआ नज़र आती है
मुहौब्बत का क़त्ल करती नफरत नज़र आती है...
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