तेरी बेरुखी ने मुझे पत्थर बना दिया
हर हंसी को आँखों की नमी
और ज़िन्दगी को मौत से बदत्तर बना दिया...
तेरे अहम ने मेरी मुहौब्बत की चिता जला दी
अब सुलगते हुए मेरे जज़्बात पर
अपने हाथ तो न सेंक...
है बस अब इतनी सी इल्तज़ा
की बस अब ठंडी होने दे मेरे राख़ को...
No comments:
Post a Comment